फरीदाबाद। मेरठ निवासी 73 वर्षीय उमा रस्तोगी को पिछले कुछ सालों से बार-बार पेशाब जाने की समस्या हो रही हथी। इस समस्या की ओर जयादा ध्यान न देते हुए वे सामान्य जीवन व्यतीत कर रही थीं, लेकिन एक दिन अचानक हालत ये हुई कि उनका बाथरूम तक जाना मुश्किल हो गया। इस दौरान वे अपनी भाभी के पास वड़ोदरा में थीं। उनकी स्थिति को देखते हुए परिजनों ने उन्हें पास के अस्पताल के यूरोलॉजिस्ट को दिखाया। अस्पताल में उनकी एमआरआई, अल्ट्रसाउंड, सीटी स्कैन और लेप्रोस्कोपिक बायोप्सी जांच की गई। जांच की रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली थी। डॉक्टर ने बताया कि उमा रस्तोगी के पेट में जख्म है और जोकि कैंसर का संकेत दे रहे हैं और बीमारी पूरे पेट में फैली हुई है जिसके कारण उनकी समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है। साथ ही मरीज को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। यूरोलॉजिस्ट ने उन्हें कैंसर विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी। मरीज परिजनों के साथ दिल्ली, मेरठ के विभिन्न अस्पतालों में उपचार के लिए गया, लेकिन मरीज की उम्र और बीमारी की विकसित स्थिति को देखते हुए सभी डॉक्टरों ने उपचार के लिए मना कर दिया। उम्रदराज होने के कारण सभी डॉक्टरों का यही कहना था कि यह एक हाई रिस्क मामला है और मरीज का ऑपरेशन करने में बहुत जोखिम है। उमा के परिजनों ने अपने एक रिश्तेदार के कहने पर एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज अस्पताल में लेकर पहुंचे। अस्पताल के ऑन्कोलॉजी सर्जन डॉ. रोहित नय्यर ने मरीज की सभी रिपोर्ट देखीें जिनमें कैंसर के संकेत नजर आ रहे थे। डॉ. रोहित नय्यर, डॉ. थान सिंह तोमर और विकास जैन ने रिपोर्ट और मरीज की स्थिति के आधार पर मरीज की सर्जरी करने की सलाह दी। परिजनों की सहमति के बाद मरीज की टोटल पेरिटोनेक्टोमी एवं साइटोरिडक्शन सर्जरी की गई। ९ घंटे चली इस सर्जरी के दौरान पाया गया कि मरीज के पेट में पानी,गांठे और घाव थे, जिसके कारण मरीज की अमेंटम के हिस्से, छोटी आंत के हिस्से, बड़ी आंत के हिस्से और बच्चादानी निकालने पड़े। मरीज के पेट में जहां-जहां बीमारी थी उन सभी हिस्सों को निकालकर एक आधुनिक स्पेश्यलिस्ट तरीके जिसे हाईपैक यानि हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथैरेपी पद्धति कहा जाता है, के माध्यम से सर्जरी के दौरान कीमोथैरेपी की गई। सर्जरी से पहले पेट में ट्यूमर को लोड़ बढऩे के कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती थी और खाना-पीना भी मुश्किल हो गया था। सर्जरी के बाद उमा अपने नियमित जीवनशैली में वापस आ गई है। दस दिन अस्पताल में व्यतीत करने के बाद उनको डिस्चार्ज कर दिया गया। उमा ने बताया कि अब वे उन्हें सांस से संबंधित किसी भी प्रकार को कोई समस्या नहीं है और वे खाना-पीना भी ठीक से खा पा रही हैं। उन्होंने डॉक्टर का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि दिल्ली, वडोदरा और मेरठ के बड़े से बड़े अस्पतालों से इलाज के लिए मना होने पर हमने उम्मीद छोड़ दी थी। एशियन अस्पताल के डॉक्टरों ने मुझे नया जीवन दिया है।