हरियाणा। एक कहावत है कि जब आप अपने र्शीर्ष पर हो तो कभी भी किसी का मूल्याकन अपने से कमंतर नही आंकना चाहिए क्योकि इसमें कोई दो राय नही है कि वक्त पलटने में वक्त नही लगा करता है। ऐसा ही कुछ हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के साथ होता दिखाई दे रहा है। राजनीति के गुरू माने जाने वाले भजनलाल को दरकिनार कर जब कांग्रेस ने भूपेन्द सिंह हुड्डा को प्रदेश की कमान सौंपी तो कयास यह लगाए जा रहे थे कि हरियाणा में एक नया बदलाव जरूर आयेगा पर ऐसा हो नही पाया और प्रदेश अपने एक सूत्रीय कार्यक्रम पर ही चलता रहा। इस दौर में भूपेन्द्र सिह हुड्डा अपने चरम पर थे और उनके समर्थकों की बढौतरी दिन प्रतिदिन होती जा रही थी। शायद यही वजह थी कि उन्होने अपने पूर्व प्रतिद्ववद्वी भजनलाल के सुपुत्र कुलदीप बिश्रोई को दरकिनार कर दिया और उन्हे लगा कि शायद अब वही कांग्रेस की राजनीति के सर्वासवा है। यही गल्ती प्रदेश के एक और मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला भी कर चुके है,जिसकी खामियाज वह जेल जाकर भुगत रहे है। परन्तु राजनीति मे कब परिर्वतन हो जाए कुछ कहा नही जा सकता। गर्दिश में चल रहे सितारे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र ङ्क्षसह हुड्डा पर भारी पड रहे है। जाट आंदोलन में हुई हिंसा के बाद कांग्रेस पार्टी ने हुड्डा से दरकिनार कर लिया है। इतना ही नही प्रदेश सरकार ने नेशनल हेराल्ड को कौडिय़ों के भाव जमीन आवंटन धांधली में विजिलेंस जांच में दोषी पाए गए भूपेन्द्र हुड्डा को जेल भेजने की तैयारिया शुरू कर दी है। बकायदा इस मामले में उनके खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया है। आरोप था कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भूपेन्द्र ङ्क्षसह हुड्डा ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी पार्टी के समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड को पंचकूल में गैरकानूनी तरीके से जमीन आवंटित कर दी थी। सरकार बदली और जांच के बाद हुड़्डा दोषी पाए गए। अब जब हुड्डा दोषी पाए गए है तो उनका एंव उनके समर्थको का राजनीतिक भविष्य क्या होगा इस पर भी संशय की स्थिती बनी हुई है। क्योकि कांग्रेस हाईकमान ने भजनलाल के सुपुत्र कुलदीप बिश्राई को गले लगा लिया है ताकि जाट आंदोलन में हिंसा का दाग वह पार्टी से हटा सके। कुलदीप बिश्नाई के पार्टी में शामिल किए जाने का स्पष्ट संकेत है कि पार्टी से हुड्डा का वर्चस्व कम हो जाना। हिंसा की घटनाक्रम के पीछे लोगो ने भूपेंद्र हुड्डा को दोषी माना था। हांलाकि भूपेन्द सिह हुड्डा अपने आप को निर्दोष साबित करने में लगे हुए है परन्तु हकीकत यह है कि वह अब लोगो के दिल से अलग हो चुके है। अब जब वह अकेले पड चुके है देखना यह है कि उनकी जेल यात्रा कितनी कष्टदायक साबित होगी। वही भूपेन्द्र ङ्क्षसह हुड्डा एंव अशोक तंवर के मध्य रङ्क्षजश तो पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय रही है परन्तु कुलदीप बिश्रोई के कांग्रेस मे वापिसी के बाद तंवर की स्थिती पहले से मजबूत हो चुकी है। हांलाकि यह तो भविष्य तय करेगा कि प्रदेश की कमान किसी मिलेगी परन्तु शायद कुलदीप बिश्राई की स्थिती तंवर के मुकाबले अधिब प्रबल है। पूर्व मेें मुख्यमंत्री परिवार से ताल्लतुकात रखना और गैर जाट राजनीति में भजनलाल का प्रभाव उन्हे अच्छी जगह दे जाए। यदि इस तरह की स्थिती बनती है तो अशोक तंवर समर्थको को पार्टी में क्या पद मिलेगा यह जरा सशंय की स्थिती बनी हुई है।
