फरीदाबाद! भूपानि ग्राम स्थित, सतयुग दर्शन वसुन्धरा के प्रागंण में स्वतन्त्रता दिवस के शुभ अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में बिना किसी भेद-भाव के हर उम्र, धर्म, जाति व सम्प्रदाय के सदस्यों ने समान रूप से भाग लिया। कार्यक्रम के आयोजन की आवश्यकता के बारे में पूछने पर ट्रस्ट के प्रवक्ता श्री सजन जी ने कहा कि यह आध्यात्मिक क्रांति कुदरती हुकम अनुसार संसार में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने के निमित्त समर्पित है और आद् सभ्यता की जननी है यानि नवीन युग सतयुग की पुन: स्थापना हेतु है। इसी क्रांति के माध्यम से हम समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार सजन भाव को व्यवहार में लाते हुए, सतयुग की आजादी का दर्शन कर सकते हैं और जीवन के परम पुरुषार्थों यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को सिद्ध कर, परमधाम पहुँच विश्राम को पा सकते हैं।
आगे स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर इस कार्यक्रम को आयोजित करने की महत्ता के विषय में प्रकाश डालते हुए श्री सजन जी ने कहा कि स्वतन्त्रता कभी भी किसी जाति, समाज व राष्ट्र विशेष की आजादी का विषय नहीं होती अपितु इसका विषय होता है, वैश्विक स्तर पर, सर्वांगीण व्यक्तिगत नैतिक उत्थान। चूंकि व्यक्तिगत नैतिक उत्थान के साथ ही अखिल परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व का हित जुड़ा हुआ है इसलिए आध्यात्मिक क्रांति के तहत् स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर आयोजित यह कार्यक्रम कुल मानव जाति को आवाहन देते हुए कह रहा है कि हे मानवो ! समभाव-समदृष्टि की युक्ति अपनाओ और देहिक बंधनों व एन्द्रिक विषयों और दोषों से बंधनमुक्त हो जाओ यानि स्वार्थपर संकीर्ण पाश्विक वृत्तियों की दासता से स्वतन्त्र हो, सांसारिक झंझटों व मानसिक प्रंपचों से निज़ात पाओ। इस तरह पन्द्रह अगस्त, आजादी दिवस वाले दिन आयोजित यह कार्यक्रम सबको .काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकारों से निज़ात पा, जन्म जन्मांतरों की वासनाओं व मन में उठने वाले संकल्पों-विकल्पों से स्वतंत्र हो जाने का संदेश दे रहा है। यही नहीं यह सजनों को समस्त भिन्न भेदों, द्वन्द्वों, दु:खों-रोगों, तापों-संतापों, फुरनों, आदि से छुटकारा पा, जीवन मुक्त हो जाने की युक्ति का पाठ पढ़ा रहा है ताकि त्रेता, द्वापर व कलियुग का अज्ञान अंधकार सिमट जाए व सत्-वस्तु हर हृदय में प्रकाशमान हो जाए। इस तरह अनेक धर्मों व पंथों में भटकी हुई मानव जाति, पुन: निज धर्म पर खड़े हो मानवता का प्रतीक बन जाए और खंड-खंड में विभाजित हुई भारत माता पुन: एक हो, हर्षा जाएं।
श्री सजन जी ने सजनों से कहा कि अगर हकीकत में इस कारज को सिद्ध करना चाहते हो तो सत्य का संग कर उसका अपने मन में विकास करो यानि समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार, समान भाव से युक्त हो व चराचर जगत को एकरूपता से देखते हुए, आपस में आत्मीयता का व्यवहार करो। ए विध् सत्-वस्तु की विशेष प्रवृत्ति, नीति-रीति, चाल, आहार-आचार-विचार व व्यवहार अपना कर व निष्कामता से अपने कर्त्तव्यों का समयबद्ध निर्वहन करते हुए, जन्म अपना आज़ाद करो। उन्होंने फिर से सजनों को इस मंगलकारी कारज की सिद्धि के प्रति उत्साहित करते हुए कहा कि अगर विश्व को एक आत्मीयता के रंग में रंग, स्वाधीनता की राह दिखाना चाहते हो तो अविलम्ब स्वयं से आरम्भ करके कुल परिवार, समाज व विश्व में स्वाभाविक परिवर्तन की क्रांति का बिगुल बजा दो। आशय यह है कि अपने साथ-साथ अन्यों को भी कलुकाल के दूषित भाव-स्वभाव त्याग कर सतयुगी निर्मल भाव-स्वभाव अपनाने के लिए प्रेरित करो और समभाव-समदृष्टि की युक्ति के अनुशीलन द्वारा, युगों से चले आ रहे संकल्प कुसंगी के झुखने रोने को मिटा, आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाओ। जानो यही नैतिक स्वाधीनता ही आपका लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मन-वचन-कर्म से जुट जाओ और परम पुरुषार्थ व संगठित प्रयास द्वारा कुल विश्व में शांति का परचम लहरा दो। इस तरह कलुकाल के घोर अंधकार को विघ्वंस कर, चहुं ओर सतवस्तु का उजियारा फैला दो।
यहाँ याद रखो कि समभाव-समदृष्टि मात्र इन दो शब्दों के अर्थों को व्यवहार में लाने पर ही, न केवल आपके मन से अपितु कुल विश्व में व्यापक रूप से फैली अशांति, कुरीतियों, मान्यताओं, रूढ़िवादिताओं, धर्मान्धता, अराजकता, अलगाववाद, जातिवाद, अन्याय, शोषण, आतंकवाद, भिन्न-भेद, अमीरी-गरीबी, जैसी बीमारियों का अंत हो सकेगा और समानता के आधार पर न्यायसंगत एक छत्र ईश्वरीय शासन की यानि सजन युग की सुदृढ़ नींव रखी जा सकेगी। सो ऐसे उत्तम स्वाधीन साम्राज्य की स्थापना हेतु सजनों पुरुषार्थ दिखाओ, पुरुषार्थ दिखाओ और पुरुषार्थ दिखा कर, कुकर्मियों-अधर्मियों के बोझ तले दबी भारत माता को उनके पापों से मुक्त करा हर्षा दो।