फरीदाबाद!हे ईश्वर ! हमें बुराई से अच्छाई की ओर ले चलो। हे ईश्वर ! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। हे ईश्वर ! हमें मृत्यु से मोक्ष की ओर ले चलो। नि:संदेह वेद-शास्त्र के इस कथन से तो हम सब भली-भांति परिचित ही है, परन्तु इस कथन को हकीकत में चरितार्थ कर, जन-जन को बदी से मुक्त कर, पुन: नेकी की राह पर प्रशस्त करने का बीड़ा उठाया है, सतयुग दर्शन ट्रस्ट (रजि०) ने, अपने परिसर में समभाव-समदृष्टि का स्कूल खोलकर। आपकी जानकारी हेतु भौतिक ज्ञान से भिन्न, आत्मिक ज्ञान प्रदान करने वाला यह विश्व का पहला वह अनूठा स्कूल है जो अपनी विभिन्न ज्ञानप्रदायक गतिविधियों के माध्यम से सबके अन्दर विशेषतया बाल-युवाओं में, एक सद्गुण सम्पन्न, सदाचारी इंसान बनने की उमंग पैदा कर, हृदय विहित् अपने मूल आद् सत्य स्वरूप से जुड़ने की प्रेरणा दे रहा है ताकि सब आत्मा और परमात्मा की शाश्वतता, शाश्वत जीवन और शाश्वत मूल्यों में विश्वास, नैतिक व्यवस्था को भौतिक व्यवस्था से उच्चतर मानने में विश्वास तथा इन विश्वासों के अनुसार आचार-व्यवहार दर्शा कर, एकता, एक अवस्था में आ सकें और सतवस्तु में प्रवेश पा विश्राम को पा सकें।
इस संदर्भ में जैसा कि फरीदाबाद वासियों को तो ज्ञात ही है कि ट्रस्ट अपनी स्थापना के आरम्भ से ही विभिन्न आयोजनों द्वारा समाज के हर वर्ग के शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उत्थान हेतु प्रयासरत है परन्तु इस समभाव-समदृष्टि के स्कूल से जो प्रयास क्रांतिकारी स्तर पर पिछले कुछ सालों से युग चेतना के निमित्त, प्रति रविवार लगने वाली आनलाइन/आफॅलाईन कक्षाओं, वर्कशापस, अंतर्राष्ट्रीय मानवता-ई-ओलम्पियाड व आत्म जागरूकता अभियान के रूप में जगह-जगह निष्कामता से निरंतर किए जा रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि ट्रस्ट जनसाधारण में आत्मीयता के भाव के प्रसार द्वारा, मानवता का जागरण बाल्य-अवस्था से ही करने हेतु कटिबद्ध है। विगत दो माह में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित आध्यात्मिक वाक्पटुता प्रतियोगिता की आशातीत सफलता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। ज्ञात हो इस प्रतियोगिता के अंतर्गत देश के १८ राज्यों व ३ केंद्र शासित प्रदेशों के बाल-युवाओं व प्रौढों ने तीन चरणों में, बड़े उत्साह से भाग लिया और सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में विदित आत्मिक ज्ञान की पढ़ाई पर आधारित आध्यात्मिक विषयों यथा आत्मिक ज्ञान, भौतिक ज्ञान व आत्मिक ज्ञान में अंतर, भाव, विचार, विवेक, संकल्प स्वच्छ, आहार एवं वाणी संयम, आत्मनिरीक्षण, आत्मसंयम, मानव स्वरूप की पहचान, ब्रह्म, शब्द ब्रह्म, समभाव-समदृष्टि की जीवन उपयोगी महत्ता आदि पर अत्यन्त ही प्रभावशाली व सुरूचिपूर्ण ढंग से अपना व्यक्तव्य प्रकट कर सबको चकित कर दिया। जीवन की यथार्थता से सम्बन्धित उनकी इस भावपूर्ण अभिव्यक्ति को देखकर देश के विभिन्न भागों से वसुंधरा परिसर में आए प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों, दार्शनिकों, प्रधानाचार्यों, न्यायाधीशों, डाक्टरस, शिक्षकों व विद्यार्थियों ने सतयुग दर्शन ट्रस्ट के अनथक प्रयासों की जम कर सराहना की और कहा कि इस क्रार्यक्रम को देखने के उपरांत यह स्पष्ट हो जाता है कि कमी आज की पीढ़ी में नहीं अपितु उनकी पालना करने वाले अभिभावकों, शिक्षकों, सामाजिक सदस्यों व देश के कर्णधारों में है। यदि बाल-अवस्था से ही शिक्षण पद्धति के अंतर्गत भौतिक ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ आत्मिक ज्ञान प्रदान करने का प्रावधान कर, तद्नुरूप समुचित व्यवस्था कायम कर दी जाए और उन्हें बाल-युवाओं के जीवन की महत्त्वपूर्ण आधारशिला बना दिया जाए तो कोई कारण नहीं बनता कि आज की पीढ़ी, सत्य-धर्म के मार्ग से विचलित हो, असत्य-अधर्म का अविचारयुक्त रास्ता अपना दुराचारिता की गर्त में फँस जाए और अपना जीवन बरबाद कर बैठे।
हैरानी की बात तो यह है कि आधुनिक समाज की बाल-युवा पीढ़ी जहाँ आज अध्यात्म या परमार्थ से दूर भागती है अधिकतर उस आयु वर्ग के सजनों ने ही, इस प्रतियोगिता के समापन समारोह के दौरान, ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनकी इसी प्रार्थना को स्वीकार कर, ट्रस्ट के तत्वाधान में चल रहे, समभाव-समदृष्टि के स्कूल यानि ध्यान-कक्ष द्वारा, शीघ्र ही बाल दिवस के शुभ अवसर पर, बाल-युवाओं के नैतिक उत्थान हेतु ‘आध्यात्मिक गूंज – कविता सुमन‘ नामक ‘अंतर्विद्यालयी कविता पाठ प्रतियोगिता‘ आयोजित करने की घोषणा कर दी है। ज्ञात हो कि यह प्रतियोगिता तीन वर्गों में यथा दूसरी से पाँचवी कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए, छठी से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए, तथा नौवीं से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए है। इस आयोजन के तहत् पहले प्रत्येक स्कूल, समभाव समदृष्टि के स्कूल द्वारा, आत्मिक ज्ञान की पढ़ाई पर आधारित आध्यात्मिक विषयों पर, अग्रेंजी या हिन्दी में अपने स्तर पर प्रतियोगिता करवाएगा। फिर प्रत्येक श्रेणी में चयनित सर्वश्रेष्ठ सात प्रविष्टियों यानि मौलिक कविताओं के वीडियो को निर्णायक मंडल की जाँचनार्थ, स्कूल के अधिकारियों को आनलाइन लिंक पर .mp4 प्रारूप में दिनाँक 5 दिसम्बर 2024 तक ऑनलाइन अपलोड करना होगा। तद्पुरांत निर्णायक मंडल के निर्णय अनुसार, प्रत्येक श्रेणी में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाएगा। साथ ही समाज के नैतिक उत्थान के कार्य में स्वेच्छा से पूरी तरह योगदान देने वाले स्कूल को भी सम्मान चिन्ह प्रदान किया जाएगा। ट्रस्ट के अधिकारियों ने बताया कि इस आयोजन से प्राप्त होने वाले लाभ को दृष्टिगत रखते हुए, जनवरी-फरवरी २०२५ में यह प्रतियोगिता समभाव-समदृष्टि के स्कूल द्वारा कालेज स्तर पर भी आयोजित की जाएगी। यही नहीं युग परिवर्तन के सत्य को दृष्टिगत रखते हुए, समय रहते ही समाज में स्वाभाविक परिवर्तन लाने की क्रिया को क्रांतिकारी स्तर पर गति देने हेतु, आगामी वर्ष में भी समभाव-समदृष्टि के स्कूल द्वारा ऐसे कई महत्त्वपूर्ण आयोजन किए जाएंगे ताकि आज का मानव, मनमत पर आश्रित जीवनयापन का स्वार्थपर अधम व पापयुक्त तरीका त्याग कर, आत्मीयता के सिद्धान्तों पर आश्रित रीति-नीति, चाल-चलन, खान-पीन, रहन-सहन, बोल-चाल, उठने-बैठने व वर्त-वर्ताव का अनूठा तरीका अपनाकर, सतोगुणी यानि सज्जनता का प्रतीक बन सके और सतयुग की ओर प्रशस्त हो, मानव रूप में अपनी उत्कृष्टता को सिद्ध कर सके।
अंत में ट्रस्ट के अधिकारियों से हुई बातचीत के आधार पर हमने यही निष्कर्ष निकाला कि आज के बच्चे ही कल के कर्णधार हैं। इस संदर्भ में हम जिस तरह से उनका लालन पालन करेंगे व जैसी शिक्षा उन्हें देंगे, वे बड़े होकर वैसा ही अपने आचार-व्यवहार द्वारा प्रदर्शित करेंगे और समाज को उत्थान या पतन की दिशा में ले जाने में अपना योगदान देंगे। इस बात को समझते हुए, आज के बुद्धिजीवियों के लिए बनता है कि वे सांसारिकता से उनकी मानसिकता को सींचने के स्थान पर, परमार्थिक ज्ञान द्वारा उनका सिंचन करें ताकि वे अपने ज्ञानमय, गुणमय व शक्तिवान स्वरूप का साक्षात्कार कर सकें और उनका मन संतुष्ट व शांत, चित्त सुदृढ़ व धीर, वृत्ति, स्मृति, बुद्धि व स्वभाव निर्मल हो सत्य के परिवेश में ढल सके। यही प्रयोजन है सतयुग दर्शन ट्रस्ट का। इस प्रयोजन के सर्वहितकारी महत्त्व को समझते हुए हमारे लिए भी बनता है कि हम भी इन आयोजनों का हिस्सा बनें ताकि चारित्रिक पतन की स्थिति से उबर मानव जाति पुन: सतयुग यानि सुनहरे भविष्य की ओर प्रशस्त हो सके और सुख शांति से जीवनयापन करते हुए, विश्राममय अवस्था में आ परमेश्वर की सर्वव्यापकता के यथार्थ को सिद्ध कर सके। इस अपेक्षा के साथ कि अधिक से अधिक स्कूल ‘आध्यात्मिक गूंज-कविता सुमन‘ यानि ‘अंतर्विद्यालयी कविता पाठ प्रतियोगिता‘ में स्वेच्छा से भाग लेंगे, सभी को शुभकामनाएँ।
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