फरीदाबाद। सतयुग दर्शन ट्रस्ट के तत्वाधान में निर्मित मानवता विकास लब के द्वारा आयोजित मानवता फेस्ट के द्वितीय दिवस के मौके पर मानवता फेस्ट में आ रहे लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हो रही है। बच्चों को शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिगत आज युवाओं को प्रात:कालीन कक्षा में योगा5यास के उपरांत, मूलमंत्र आद् अक्षर की महातता से परिचित कराते हुए उस प्रणव ध्वनि को सुनने की दिव्य क्षमता कैसे अपने अन्दर विकसित करनी है इसका अभ्यास कराया गया। इस संदर्भ में सजन ने युवा पीढ़ी को बताया कि ब्राहृ पद सर्वोच्च पद है। इस पद की प्राप्ति प्रत्येक मानव जीवन का प्रथम व अंतिम लक्ष्य है। अत: इस उच्च पद की प्राप्ति हेतु अपने अस्तित्व के मूलाधार शब्द ब्राहृ को समझो। जानो शब्द ब्राहृ से तात्पर्य सृष्टि के उस मौलिक, प्रथम, प्रधान व मु2य पवित्र, नित्य, स्थिर, दृढ़, अनश्वर, अविनाशी, स्वयंभू व परब्राहृवाचक यानि परमात्मा को व्यक्त, प्रकट या सूचित करने वाले उस श4द से है जिससे सकल सृष्टि यानि जगत की उत्पत्ति होती है, पालन होता है व अंतत: जिसमें सबका लय हो जाता है। जानो सूक्ष्म से सूक्ष्म होने के कारण यही संपूर्ण संसार को एक रस प्रकाशित करता हुआ ब्राहृ सत्ता के रूप में, सभी प्राणियों में प्रवेश करता है और एक होकर भी अपने आपको अनेक रूपों में सृजित कर लेता है। इसी कारण समस्त धर्म ग्रन्थों में इस रूप, रंग, रेखा रहित ब्राहृ को सबसे बड़ी चेतन सत्ता माना गया है और कहा गया है कि यही चेतन ब्राहृ सत्ता ही जगत का मूल कारण और सत, चित्, आनंदस्वरूप है तथा इसके अतिरिक्त और जो कुछ प्रतीत होता है वह सब असत्य और मिथ्या है। आगे उन्होने कहा कि ओ3म ही अजर-अमर आत्मा का निराकार रूप है। यही शब्द ही वह केन्द्र बिन्दु है जहाँ से ब्राहृ, जीव, जगत के सत्य यानि आध्यात्मिक (आत्मिक) व भौतिक ज्ञान का प्रकटन हो रहा है। यही अन्दरूनी व बैहरूनी उन्नति का एकमात्र साधन है और यथार्थ में दिव्यता की खिडक़ी खोलने की कुंजी है। इसी में समस्त ज्ञान विज्ञान सममोहा हुआ है और इसी का वर्णन सब वेद शास्त्र व धर्म ग्रन्थ कर रहे हैं। यही सुरत व श4द के मिलन का व विलीन होने का केन्द्र बिन्दु (शून्य स्थान) है जहाँ पहुँच जीव विश्राम को पाता है। श्री सजन ने यह भी कहा कि इसी मिलन का आवाहन् देने हेतु न केवल समपूर्ण ब्राहृांड में अपितु हमारी-आपकी, हर श्वास से सदा ब्राहृ श4द की ध्वनि निसृत होती रहती है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यही ब्राहृांड व हमारे श्वास की प्रत्येक गतिविधि को नियंत्रित करती है। कहने का आशय यह है कि हर मानव के ह्मदय आकाश में शून्य से उत्पन्न हुई यह ध्वनि अनहद की झनकार के रूप में अनावरत रूप से झंकृत होती रहती है और मानव को उसके अस्तित्व की चैतन्य शक्ति का भान कराती रहती है। इस चैतन्य शक्ति यानि अपनी वास्तविकता का बोध करने हेतु ही सजनों हर शरीरधारी जीव के लिए अजपा जाप द्वारा अपने ख़्याल यानि सुरत को इस प्रणव ध्वनि के साथ निरंतर जोड़े रख श4द ब्राहृ विचार को ग्रहण करने का विधान है। अंत में उन्होंने युवाओं को स्पष्ट किया कि जिसका भी ख़्याल इस अनहद ध्वनि के साथ जुड़ जाता है उसका मन-चित्त एकाग्र हो प्रभु में लीन हो जाता है तथा चिर स्थाई संतोष व शांति की प्राप्ति होती है। परिणामत: उस धीर व गंभीर आत्मज्ञानी की वृत्ति-स्मृति-बुद्धि व भाव स्वभाव निर्मल हो जाते हैं और वह उच्च बुद्धि, उच्च ख़्याल सर्वव्यापक अपने परमात्म स्वरूप का यथार्थ बोध कर लेता है यानि उस सदाचारी के ह्मदय में सतवस्तु का वास हो जाता है और वह सूक्ष्म स्थित परमात्मा के विराट् स्वरूप का दर्शन कर कृतार्थ हो जाता है। यही कारण है कि फिर मन में सजन भाव के अतिरिक्त कोई अन्य विकारी भाव नहीं पनप पाता और वह निर्भय होकर सच्चाई धर्म की राह पर चलते हुए अपने सच्चे घर पहुँचने में कामयाब हो जाता है। अत: आप भी अपने जीवन के परम प्रयोजन को सिद्ध करने हेतु अपने जीवन के मूलाधार को समझो और उसे ग्रहण कर रौशन हो जाओ।