फरीदाबाद। कांग्रेस प्रदेश इकाई बेशक सार्वजनिक मंचों पर दो फाड स्वीकार ना करे पर इसमें कोई दो राय नही है कि प्रदेश कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिह हुड्डा एंव अध्यक्ष अशोक तंवर के भंवर मे फस गई है। दोनो की आपसी खीचतान एंव कलह जगजाहिर है,जिसे यदि हालफिलहाल की रोजी रोटी कार्यक्रम के साथ किसान आगामी किसान मजदूर पंचायत से जोड कर देखा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नही होगी। राजनतिक गलियारों में चर्चा है कि आगामी विधानसभा को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिह हुड्डा एंव अध्यक्ष अशोक तंवर प्रदेश में जनता के साथ-साथ आलकमान के समक्ष अपना कद बौना नही दिखाना चाहते है इसलिए अपने स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन कर मुख्यमंत्री की दौड में नम्बर-1 दिखाना चाह रहे है। अधिकतर कार्यक्रमों में दोना गुट के लोग कभी भी एक दूसरे कार्यक्रम में शिरकत नही करते तथा काफी मामलों में दूरिया ही बना कर रखते है। इसमें कोई शक नही है कि हालफिलहाल की बात करे तो प्रदेश में भूपेन्द्र ङ्क्षसह हुड्डा के समर्थको का एक लम्बा हूजुम अध्यक्ष अशोक तंवर के मुकाबले अधिकतम है। इसलिए राजनीतिज्ञ के तौर पर हरियाणा में हुड्डा अपने आप में तंवर पर भारी ही प्रतीत होते दिखाई दे रहे है। हांलाकि माना यह जाता रहा है कि अशोक तंवर को कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का पूर्ण समर्थन प्राप्त है और उन्ही की बदौलत वह प्रदेश राजनीति में अध्यक्ष की पदवी तक पहुच पाए है। जबकि भूपेन्द्र सिंह हुडडा एक विकल्प है क्योकि वह एक जातीय समूह से सबंध रखते है जो हरियाणा की राजनीति में बहुत अरसे से अपनी पकड बनाए हुए है तथा वोट प्रतिशत का सर्वाधिक है। बेशक हरियाणा में कुछ समय पूर्व एक विशेष जातीय आरक्षण आंदोलन में पूर्व मुख्यमंत्री का नाम घसीटा गया जिसे लेकर उन्हे किरकरी का सामना भी करना पडा। इतना ही नही इस बात का संज्ञान बहुत बारीकी से आलाकमान द्वारा लिया गया और परिणामस्वरूप नॉन जॉट के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के सुपुत्र कुलदीप बिश्राई का उदय हो गया है। बेशक राजनीतिक समीकरणों के उलझन में कांग्रेस पार्टी अपने आप को असहज महसूस कर रही है परन्तु यह बता तो तयशुदा है कि आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी को भीतरी फाड का खामियाजा भुगतना पडेगा।