फऱीदाबाद: ग्राम भूपानी स्थित, एकता के प्रतीक, ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि के स्कूल की भव्य शोभा देखने आज महावीर प4िलक हाई स्कूल के बच्चे सतयुग दर्शन वसुन्धरा परिसर में पहुँचे। कैमपस की अद्वितीय शोभा देखते ही बच्चों व साथ आए अध्यापकों की आँखे खुली की खुली रह गई। उनका कहना था कि फरीदाबाद क्षेत्र में इतना सुन्दर दर्शनीय स्थल भी है, जहाँ इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है, इसका उन्हें पता ही नहीं था।
उपस्थित बच्चों व अध्यापकों को कैमपस के मु2य द्वार से लेकर ध्यान-कक्ष की शोभा व निर्मित बनावट की महत्त से परिचित कराते हुए बताया गया कि चाहे इस शरीर का कर्त्ता-हर्त्ता परमेश्वर है परन्तु फिर भी यह समझने की आवश्यकता है कि जीव और शरीर भिन्न हैं। जीव चेतन है और शरीर जड़। स्थूल शरीर के साथ जीव के संयोग और वियोग का नाम ही जन्म और मृत्यु है। इस प्रकार एक स्थूल शरीर से दूसरे स्थूल शरीर में गमनागमन जीव के अपने भाव-स्वभाव अनुरूप इन्द्रियों द्वारा किए कर्मो के फलस्वरूप अनंत कालों तक तब तक चलता रहता है जब तक उसे समयक ज्ञान नहीं हो जाता। इसीलिए उन्होंने सबको अपनी प्रार4ध को सँवारने हेतु अपने जीवनकाल में भाव-स्वभाव के विशुद्धिकरण द्वारा शुभ कर्म करने का सुझाव दिया गया। इसी संदर्भ में जीव की अनश्वरता और जगत की नश्वरता का भान कराते हुए उन्हें प्राकृतिक दृश्यों के साथ 2याल को जोडऩे से भाव-स्वभाव पर पडऩे वाले नकारात्मक दुष्प्रभावों का परिचय देते हुए कहा कि इस ब्रह्मांड में जो भी हमें अच्छा या प्रिय लगता है उसके प्रति हमारे अन्दर राग व जो भी बुरा या अप्रिय लगता है उसके प्रति अन्दर द्वेष अर्थात् द्वि-भाव पनपता है। इस प्रकार राग-द्वेष के कारण पनपे विषय-विकारों अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का घेरा जीव की बुद्धि हर, उसे अज्ञान रूपी अंधकार में बंधनमान बना देता है। फलत: अविवेक के कारण वह न ही अपना कार्य कुशलता से कर पाता है और न ही अपनी रक्षा कर पाता है। यहाँ तक कि इन्द्रियाँ भी उसके वश में नहीं रहती और वह कुकर्म-अधर्म में फँस अपनी हानि करने वाला बन अपने से भी प्रेम नहीं रख पाता।