फरीदाबाद। जैसा कि पूर्व सूचित किया गया था कि मानवता की सेवा में रत सतयुग दर्शन ट्रस्ट, वर्तमान समय में पथभ्रष्ट हो रही युवा पीढ़ी के बहकते कदमों को, सही दिशा निर्देश देने के लिए, मानवता विकास 1लब के माध्यम से दिनाँक 12 अगस्त से दिनाँक 15 अगस्त 2017 तक विशाल च्मानवता फेस्टज् का आयोजन कर रहा है। नि :संदेह सज्जनों आमतौर पर फेस्ट तो आपने बहुत देखें होंगे पर मानवता के उत्थान हेतु आयोजित यह फेस्ट अपने आप में अनूठा है 1 क्योंकि इसके अंतर्गत जीव, जगत व ब्राहृ समबन्धी आत्मिक ज्ञान, ध्यान, मौज-मस्ती व खेल-कूद, आध्यात्मिक प्रश्नोततरी आदि का अद्भुत संगम देखने का अवसर मिलेगा। बताया गया है कि इस शुभावसर पर बाल-युवाओं के मन की कोमल मानसिक कल्पनाओं को साकार करती सुसज्जा से परिसर की शोभा देखते ही बनती है। हजारों की सं2या में देश के विभिन्न शहरों से आए बाल-युवाओं की मन की उमंग व चेहरे की प्रसन्न भाव-मुद्रा से इस आयोजन की विलक्षणता साफ़ जाहिर होती है। चारो तरफ च्च्अवेक ह्रूमेनिटीज्ज् की धूम है। ऐसे में जब हमारे हमारे संवाददाता ने पंजाब से आई एक बच्ची दिव्या से यह पूछा कि च्च्अवेक ह्रूमेनिटीज्ज् 1या है तो उसने बड़े सहजे से उततर दिया मानवता का जागरण, जिसकी आज के युग में सर्वाधिक आवश्यकता है। उसने कहा कि सतयुग दर्शन ट्रस्ट बड़े ही सरल तरीके से हमें हमारी यथार्थ हस्ती से परिचित करा, इस सत्य का बोध करा रहा है कि हम ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कलाकृति मानव हैं। मानव होने के नाते मानवता ही हमारा म2य धर्म है। उसकी बात सुनकर चंढीगढ से आई स्वाति ने भी यही कहा कि सतयुग दर्शन ट्रस्ट ने ही हमें यह एहसास कराया कि विभिन्न मंतान्तरों के कारण निर्मित अनेकानेक मनगंढत धर्म तो अनित्य यानि बनते-बिगड़ते रहते हैं व समाज में मतभेद व अलगाववाद का हेतु बनते हैं, परन्तु कुदरत प्रदतत यह मानव धर्म हमारा है, नित्य है, अपने आप में परिपूर्ण है, निद्र्वन्द्व है, निर्विवाद है व सदाबहार है यानि परिस्थितियों के अनुसार कभी बदलता नहीं अपितु हर समयकाल में एकरस बना रहता है और समपूर्ण मानव जाति को समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुरूप, एक भाव-भावना-नज़रिया व स्वभाव अपना कर, आत्मियता के व्यवहार में ढ़ल, एकता में बने रहने का संदेश देता है। कायक्रर्म के आरमभ में ट्रस्ट के मार्गदर्शन श्री सजन जी ने भी अपने व्यक्तव्य के दौरान स्पष्ट किया कि मानवता ही समस्त सद्गुणों का बीज है जो सदा ह्मदय में विद्यमान रहता है और श2द ब्राहृ विचारों से सींचने पर मानवीय चरित्र के रूप में फलता-फूलता है। युक्तिसंगत की गई इस सिंचाई से ह्मदय की समुच्चय व्यवस्था का वातावरण विशुद्ध बना रहता है फलत: मानव की वृतिा, स्मृति, बुद्धि व भाव-स्वभावों का ताना-बाना निर्मल बना रहता है व मानव उच्च बुद्धि, उच्च ख़्याल कहलाता है। श्री सजन ने उपस्थित नौजवानों को समबोधित करते हुए कहा कि अपना जीवन सुखद बनाने यानि अपने जीवन के असली लक्ष्य को इसी जीवन में सिद्ध कर पाने के लिए एवं अपने मानव स्वरूप को नित्य सुन्दरता व स्वस्थता में साधे रखने के लिए अपने मन को नित्य सत्य-धर्म के भक्ति-भाव की शक्ति से संकल्प रहित रखना सुनिश्चित करो। इसके साथ अपने जीवन के कर्ताव्य धर्मसंगत निभा पाने हेतु एवं शरीर के अंग-प्रत्यंग का सक्षमता से उचित प्रयोग कर पाने के लिए समभाव नजऱों में कर समदृष्टि हो जाओ। इस प्रकार सदा अपने आचार-विचार व व्यवहार में सम अवस्था से बने रहने की खातिर आत्मविश्लेषण द्वारा अपने मन व शरीर को दोषों व रोगों से मुक्त रखने की कला ठीक ढंग से सीखो व एक विचारशील इंसान की तरह आत्मनियन्त्रण द्वारा अंतर्निहित मानवीय गुणों का न्यायसंगत प्रयोग करने की आदत डालो। कहने का तात्पर्य यह है कि अपने अंत:करण की स्वच्छता का रख-रखाव, विधि के विधान अनुसार रखने में, पारंगत बनो व इस तरह इंसानियत में बने रह, निष्काम भाव से पुण्य कर्म करते हुए, अपने मानव होने की उत्कृष्टता सिद्ध करो। निश्चित ही ऐसा करने से सबका व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन सुखमय हो जायेगा। इस संदर्भ में उपस्थित समाज के युवा वर्ग को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा कि जागो, होश में आओ और नैतिक पतनता से उबरने हेतु, मानवता में ढ़लने के प्रति, दृढ़ संकल्पी बनो। ताकतवर होकर बुराईयों से ऊपर उठो व मानव धर्म पर स्थिर बने रह, अपने मन को पुन: परमानन्द प्रदान करने वाली परमशक्ति का अनुभव करा, पराक्रमी बन जाओ। नि:संदेह ऐसा होने पर ही सजनों, एक अनूठे सच्चरित्र मानव के रूप में, इस ब्राहृांड में आपकी कदर होगी और चहु ओर आपका यशगान होगा। नि:संदेह प्रत्येक मानव को इसी मुकाम तक पहुँचाने हेतु ही यह मानवता विकास 1लब खोला गया है और इसका कार्यभार युवा पीढ़ी को सौंपा गया है। अत: अपने इस महान उतरदायित्व की पूर्ति हेतु सहर्ष आगे बढ़ो व हिममत दिखाओ, हिममत दिखाओ, हिममत दिखाओ और मानवीयता में ढ़ल कर, अ1लमंद नाम कहाओ।