फरीदाबाद। रामनवमी-यज्ञ महोत्सव के शुभारंभ की पूर्व संध्या पर सतयुग दर्शन वसुन्धरा, गाँव भूपानी, फरीदाबाद, में एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इस शोभायात्रा में श्रद्धालुओं ने हजारों की सख्या में समिमलित हो पूर्ण हर्षोल्लास के साथ इसका आनंद उठाया। इस शोभा-यात्रा में आगे-आगे च्च्सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थज्ज् की सवारी, मार्ग के दोनों ओर श्रद्धा और विश्वास को प्रकट करता बैंड, पीछे-पीछे अपने हार्दिक उद्गारों को नृत्य-शैलियों के द्वारा व्यक्त करते सुसज्जित बाल कलाकारों तथा प्रसन्नमुद्रा में सफेद पोशाक में गुलानरी दुपट्टे ओढ़े हुए सजनों की लमबी कतारें देखते ही बनती थीं। इस अवसर पर शोभा-यात्रा जब समभाव-समदृष्टि के स्कूल च्च्ध्यान-कक्षज्ज् में पहुँची तब वहाँ उपस्थित सभी सजनों को संबोधित करते हुए ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने कहा कि आज युग परिवत्र्तन की कगार पर खड़ा है। ऐसे में सजनों के भावों-स्वभावों में व्यवहारिक स्तर पर क्रांतिकारी परिवत्र्तन की आवश्यकता समय की सर्वप्रथम माँग है। इसी उद्देश्य की पूर्ति्त हेतु ध्यान कक्ष से सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में वर्णित युवावस्था की भक्ति अर्थात् समभाव-समदृष्टि की युक्ति के अनुसार सजन भाव अपनाने का आवाहन निरंतर दिया जा रहा है। हमारे संवाददाता के द्वारा समभाव-समदृष्टि के विषय में पूछने पर श्री सजन जी ने बताया कि समभाव हर परिस्थिति में अपने मन-मस्तिष्क को संतुलित अवस्था में बनाए रखने की शक्ति है। समभाव प्राणी का मूल या प्रधान गुण है जो उसमें सदा रहता है। यह प्राणी की प्रधान एवं समान प्रवृप्ति है। यह वह अवस्था है जिसमें मनुष्य का किसी एक ओर झुकाव नहीं होता यानि समान एवं अपरिवर्तित होने का भाव है। समभाव मनुष्य के निष्पक्ष एवं विरक्त होने का भाव है अर्थात् यथार्थता एवं समपूर्णता का भाव है। यह मनुष्य की कभी न छूटने वाली विशेषता है तथा मनुष्य के सद्गुणसमपन्न होने की सर्वोप्तम स्थिति है। इसी तरह समदृष्टि वह दृष्टि है जो सब अवस्थाओं और पदार्थों को देखते समय समान रहे। इस प्रकार यह सबको सम या समान दृष्टि से देखने की अवस्था है। श्री सजन जी ने आगे कहा कि वस्तुत: समभाव-समदृष्टि ही आदि काल से सृष्टि का आधारभूत सत्य है और युगों-युगों से ईश्वर की मूल प्रकृति को प्रदर्शित करने वाला प्रमुख भाव है। अत: केवल इसी भाव की पुन: हर मानव के ह्मदय में स्थापना से ही पारिवारिक, सामाजिक व वैश्विक शांति के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है और इस प्रकार सतयुग की परिकल्पना का आदर्श समाज के रूप में साकार दर्शन किया जा सकता है। इसी सन्दर्भ में सजनों को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि इस उद्देश्य में सफलता प्राप्ति हेतु प्रत्येक मानव के लिए जीवन की हर परिस्थिति में राग-द्वेष, ईष्र्या, वैमनस्य आदि विकारों से रहित होकर मन, वचन व कर्म द्वारा सत्यानुरूप आचरण करने की आवश्यकता है यानि आज के समय में समाज में फैली नकारात्मक परिस्थितियों से अप्रभावित रह, सत्य-धर्म के मार्ग पर चलते हुए, एकता व एक अवस्था में बने रहने की ज़रूरत है। यह तभी हो सकता है जब मनुष्य का ज्ञान, भाव और क्रिया तीनों समिमलित रूप से सम अवस्था में बने रहने हेतु यत्नशील हों। तभी मनुष्य निष्पक्षता से सब के प्रति सहानुभूति रखते हुए एकता व सह्मदयता अपना सकता है और एक रस रहते हुए सबके प्रति एक सा व्यवहार कर सकता है। उसकी मनोवृप्ति अर्थात् भाव एक ही धर्म या स्वभाव पर ठहरा रह सकता है और वह अपने असलियत स्वरूप में स्थित हो अपने इस मानव जीवन को सार्थक कर सकता है । हमारे संवाददाता के द्वारा समभाव-समदृष्टि के स्कूल के विषय में पूछने पर उन्होंने स्पष्ट किया कि मानव जाति को सच्चाई-धर्म की सही राह दिखाने वाला यह स्कूल अपने आप में पूरे विश्व में पहला है जिसमें प्रवेश हेतु आयु-सीमा, जात-पात व फ़ीस आदि का कोई सवाल नहीं है। जो भी सजन सीस अर्पण कर यानि अपने हर अज्ञान-ज्ञान-विज्ञान का परित्याग कर, केवल ईश्वर के आदेश को एवं उसके संविधान को जो कि समभाव-समदृष्टि का अनुशीलन है, अपने जीवन में उतारने हेतु तत्पर है, वह इस स्कूल में प्रवेश पा सकता है। संस्था की प्रबन्धक न्यासी श्रीमती रेशमा गांधी ने बताया कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी रामनवमी महायज्ञ में काफी सं2या में श्रद्धालु देश-विदेश से भाग लेंगे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए शहर के प्रमुख रेलवे-स्टेशनों एवं बस-अड्डों से भक्तजनों के लिए हर आधे घंटे में स्पेशल बसों का भी इंतजाम किया गया है। श्रद्धालुओं के रहने, खाने-पीने व अन्य सुविधाओं के प्रबंधन हेतु 200 से भी अधिक स्वयं सेवक कार्यरत हैं।