फरीदाबाद! ग्राम भूपानि, सतयुग दर्शन वसुन्धरा में आयोजित राम नवमी यज्ञ महोत्सव के तृतीय दिवस सत्-वस्तु श्री विष्णु भगवान के स्वरूप से परिचित कराते हुए श्री सजन जी ने कहा कि जानो जो विभु होने से सारे विश्व में प्रवेश किए हुए हैं यानि सर्वत्र व्याप्त व विस्तीर्ण हैं वही सत्-वस्तु श्री विष्णु भगवान हैं। .जो सर्वत्र व्यापक होने के साथ-साथ, अप्रतिहत यानि निर्विघ्न/अवरूद्ध गति करने वाले हैं और परम गतिशील, क्रियाशील अथवा उद्यमशील है, वही सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ सत्-वस्तु श्री विष्णु भगवान है। जो सूक्ष्मातिसूक्ष्म होते हुए भी जो विराट् तथा निर्मल ज्ञानस्वरूप है व सबसे निकटतम मूर्त ब्रह्म तथा जगत के अधिष्ठान, अक्षय और अव्यय जगदीश हैं, वही सत्-वस्तु श्री विष्णु भगवान हैं। इस आशय से यह जगत जिनसे उत्पन्न हुआ है, जिनमें स्थित है और जो इसकी स्थिति और लय के कर्त्ता हैं वही सत्-वस्तु श्री विष्णु भगवान है।
इस संदर्भ में आगे एक उदाहरण के माध्यम से श्री सजन जी ने सजनों को समझाया कि जिस प्रकार नन्हें से बीज में बड़ा भारी वट वृक्ष रहता है उसी प्रकार प्रलय काल में यह सम्पूर्ण जगत बीज स्वरूप में परब्रह्म परमेश्वर में लीन रहता है। फिर जिस प्रकार बीज से अंकुर रूप में प्रकट हुआ वट वृक्ष बढ़कर अत्यन्त विस्तारवाला हो जाता है उसी प्रकार सृष्टि काल में यह जगत परब्रह्म के उदर से प्रकट होकर फैल जाता है। इस तरह जिस प्रकार केले का पौधा छिलके और पत्तों से अलग दिखाई नहीं देता उसी प्रकार जगत से प्रभु अलग नहीं होते, वह प्रभु में ही स्थित देखा जाता है। मतलब यह कि इस चराचर जगत में चाहे कीड़ी से लेकर हाथी तक व ब्रह्मा से लेकर तृण तक सब वस्तुओं के रूप व नाम अनेक हैं, पर वस्तुत: जनचर-बनचर, जड़-चेतन यानि चराचर जगत में सर्वत्र विष्णु भगवान ही मूर्त्त यानि सर्व एकात्मा के रूप में समरसता से व्याप्त है। विष्णु जी ही कार्य दृष्टि से पृथक रूप और कारण दृष्टि से एकरूप हैं। असल में तो वह आप ही सर्वत्र परिपूर्ण हैं यानि विराट्, स्वराट्, सम्राट्, आदिपुरुष और नाना जीव रूप हैं तथा यह सम्पूर्ण जगत उन्ही का ही स्वरूप है।
तत्पश्चात् श्री सजन जी ने सतवस्तु श्री विष्धु भगवान के इस धरती पर प्रकट होने का रहस्य प्रगट करते हुए कहा कि जब-जब भी इस धरा से मानवीय मूल्यों व सत्य-धर्म का लोप होता है, तब-तब लीलाधारी, कलाधारी प्रभु ने विभिन्न रूपों में अवतरित होकर, पाप व अधर्म के बोझ तले दबी धरती माता व भक्त जनों को कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं और नैतिक व्यवस्था कायम कर सत्य-धर्म की स्थापना करते है। इस तरह वही समय-समय पर पृथ्वी का भार हल्का करने के लिए, संसार में धर्म, शांति और सुख की स्थापना करने के लिए और दुष्टों तथा पापियों का नाश कर संतों की रक्षा करने के लिए अवतार धारण करते हैं।
इसी श्रृंखला में उन्होंने कहा कि अब भी काल क्रम अनुसार आदि, अनादि, परमादि, कलाधारी, खेल खिलाड़ी, लीलाधारी, शंख, चक्र, गदा, पदम्-धारी, नेहकलंक चुतुर्भुजधारी श्री विष्णु भगवान के इस धरा पर प्रगट होने का समय नजदीक आ गया है यानि पाप, अधर्म और घोर नैतिक पतन की द्योतक कलियुग की आमावस्या भरी काली रात्री अब समाप्त होने वाली है और जीवन की सार रूप नित्य चैतन्य सत्ता ‘सत-वस्तु‘ अपने समस्त ऐश्वर्य, दीप्ति, समद्धि, प्रभुत्व और वैभव सम्पन्न सदानंद, लक्ष्मी नारायण यानि सर्गुण स्वरूप में सबके हृदयों में साक्षात् उजागर होने वाली है। अत: इस बात को समझते हुए कि कलुकाल हटने वाला है और सतवस्तु आने वाली है हमारे लिए बनता है कि हम समय रहते ही समभाव अपनाए और समदृष्टि हो जाए। समभाव-समदृष्टि अर्थात् ईश्वर सर्वव्यापक है, सर्वज्ञ है व सर्वशक्तिमान है, इस भाव को हृदय में ठहरा कर, सबको समदर्शिता अनुरूप एक नजर से देखना आरम्भ करें व तद्नुरूप सबके साथ आत्मीयता/सजनता अनुरूप एक जैसा ही व्यवहार करते हुए एकता, एक अवस्था में आ जाएं। जानो ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि सतवस्तु का कुदरती ग्रन्थ कह रहा है कि सतवस्तु में वही रहेगा जो समभाव के सबक़ को परिपक्व कर सतयुगी आचार-संहिता को व्यवहार में ले आएगा यानि विचार, सत्-ज़बान, एक दृष्टि, एकता और एक अवस्था में आ, संकल्प का झुखना-रोना मिटा, मृतलोक पर फतह पा जाएगा। अत: वक्त की नज़ाकत को समझते हुए यानि युग परिवर्तन के समय को अधिक न मानते हुए, समभाव-समदृष्टि के सबक़ को अविलम्ब अमल में लाओ और एक निगाह एक दृष्टि हो सतयुग दर्शन – शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी श्री विष्णु भगवान जी का साक्षात् दर्शन करने में सक्षम बन जाओ।