फरीदाबाद! दीपावली के उपलक्ष्य में सतयुग दर्शन वसुन्धरा में स्थित ध्यान कक्ष परिसर में ‘दीपावली उत्सव‘ नामक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में एन०सी०आर० के सैकड़ों सज्जनों ने हर्षोल्लास के साथ भाग लिया और आध्यात्मिक मार्ग दर्शन व मेडिटेशन के साथ-साथ केन्डल शौ, वीड़ियो शो, फ्लावर शो व रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का मज़ा उठाया। कार्यक्रम के अंत में सबने विश्व के प्रथम समभाव-समदृष्टि के स्कूल का यानि ध्यान कक्ष का परिभ्रमण किया और उसके बाद गेम्स, गरबा डॉस आदि क्रियाविधियों का भरपूर आनन्द लिया।
इस अवसर पर उपस्थित ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने सजनों से कहा कि कलियुग का घोर अंधकार शीघ्र ही छँटने वाला है व सतयुगी की शुभ प्रभात का उदय होने वाला है, अत: अगर अंधकार से प्रकाश की ओर जाना जाते हो तो कलियुगी भाव स्वभाव तबदील कर, सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में विदित सतयुगी नैतिक आचार-संहिता अपनाओ यानि अंतर दृष्टि से, सर्वव्यापक भगवान यानि समस्त
जीवों में एकात्मा का अनुभव करते हुए, सृष्टि के सर्वोच्च सत्य को हृदय से आत्मसात् कर तदनुकूल आचार-व्यवहार अपनाओ व सतयुगी मानव बन जाओ। अपनी बात को आगे स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि राजसिक व तामसिक प्रवृत्ति के प्रतीक, काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार युक्त शारीरिक भाव-स्वभाव अविलम्ब त्याग कर, आत्मज्ञान प्राप्ति द्वारा, अपने कुदरत प्रदत्त यथार्थ धर्म पर स्थिरता से खड़े होने का पुरुषार्थ दिखा, इस तरह आत्मतुष्ट हो जाओ कि, जीवन की हर परिस्थिति में, संतोष, धैर्य पर स्थिरता से बने रह, सत्य-धर्म के विचारयुक्त निष्काम रास्ते पर निरंतर चलते हुए निष्पाप जीवन जीना सहज हो जाए। जानो यही अपने आप में कलियुगी भाव-स्वभाव छोड़, पुन: सत्यनिष्ठ व धर्मपरायण इंसान बन, यथार्थतापूर्ण परोपकारी जीवन जीने के योग्य बनने जैसी मंगलकारी बात होगी।
आगे दीपावली के प्रकाश उत्सव पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि दीपावली रौशनी का, अंतर व बाह्य स्वच्छता का, प्रकाशमय त्यौहार है जो अपने आगमन पर सबके लिए असीम खुशियाँ व प्रसन्नता लेकर आता है और हर मानव को पुन: सुसंस्कृत बनने का आवाहन दे, मानव धर्म अनुरूप मर्यादित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। इस शुभ संदेश को दृष्टिगत रखते हुए आप भी अमानवीय भाव-स्वभाव छोड़, मानव धर्म अनुरूप सुसंस्कृत बनने का दृढ़ संकल्प लो और अपने घर-परिवार व समाज को सतयुग बनाओ। आशय यह है कि दीपावली की इस रौशनी को अंधकार नाशक व ज्ञान का द्योतक मानते हुए, ईश्वर की प्रकाशमान सार्वभौमिक नित्य सत्ता को दिल से स्वीकारो और समता के प्रतीक बन जाओ अर्थात् आत्मज्ञान के प्रसार द्वारा, अपने मन का बुझा दीपक जगा, अज्ञान अंधकार को दूर भगाओ और जग में उजियारा फैलाओ।