फरीदाबाद!सतयुग दर्शन ट्रस्ट (रजि०), फरीदाबाद के सौजन्य से, सतयुग दर्शन वसुन्धरा परिसर में, भव्य स्तर पर भाव-स्वाभाविक परिवर्तन लाने हेतु, आध्यात्मिक क्रान्ति के तहत् मानवता फेस्ट का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत जूम्बा, योग, मेडिटेशन सैशन, आध्यात्मिक क्रान्ति – महान शुभारंभ, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति द्वारा संकल्प पर फतह पाओ, आत्मयथार्थ नामक नृत्य नाटिका, शारीरिक मानसिक स्वस्थता का राज, सतवस्तु का कुदरती ग्रन्थ-एक परिचय एवं इसमें विदित नीतियों को अपनाने की महत्ता पर वार्तालाप, शरीर के विभिन्न प्रकार, इन्द्रियों, मन, बुद्धि, चित्त व ख़्याल समुचित क्रियाविधि पर चर्चा तथा भाव-स्वभाव परिवर्तित कर आत्मिकज्ञान प्राप्त करने की युक्ति समझाई गई। इसी संदर्भ में ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने आयोजन के दौरान कहा कि आध्यात्मिक क्रांति दो शब्दों से मिल कर बना है यथा आध्यात्मिक + क्रांति।
यहाँ आध्यात्मिक शब्द का अर्थ जीव और परमात्मा का स्वरूप बताने वाली विद्या से है अथवा प्राथमिक रूप से आत्मज्ञान प्राप्ति के प्रति प्रतिबद्धता यानि जीवन के विशेष लक्ष्य मोक्ष को सुनिश्चित रूप से प्राप्त करने हेतु, पूर्ण सत्यनिष्ठा से निषंग आगे बढ़ने के विजय मंत्र से है। इसी परिप्रेक्ष्य में क्रांति शब्द से तात्पर्य सामाजिक जीवन में आकस्मिक, त्वरित और नया युग लाने वाले ऐसे परिवर्तन से है जिसका प्रभाव चिरस्थाई हो। उन्होंने बताया कि आध्यात्मिक क्रांति केवल एक घटना नहीं अपितु एक प्रक्रिया है जिसके तहत् शारीरिक यथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे पुराने कलियुगी भाव-स्वभाव छोड़, मन में नवीन युग यानि सतयुग की आचार-संहिता अनुरूप संतोष, धैर्य, सच्चाई, धर्म, निष्काम व परोपकार जैसे भाव-स्वभाव अपनाने सुनिश्चित करने हैं और मानसिक रूप से हर परिस्थिति में एकता, एक अवस्था में सधे रहने का उद्यम दिखाना है। अत: आत्मनिरीक्षण करते हुए, इस विशेष लक्ष्य की समयबद्ध प्राप्ति हेतु, दृढ़ संकल्प हो जाओ और अपने हृदय को ओ३म् आद् अक्षर के अजपा जाप द्वारा, सूरजों के सूरज परमात्मा के प्रकाश से, पुन: प्रकाशित कर लो और जीव, जगत व ब्रह्म का सत्यपात कर सजन पुरुष बन जाओ। इस तरह निज सामर्थ्य अनुसार जितना हो सके निष्काम भाव से परोपकार कमाओ और ब्रह्म नाम कहाओ।
श्री सजन जी ने फिर से कहा कि आध्यात्मिक क्रांति की सफलता हेतु लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार के गुणों से सम्पन्न हो पुरुषार्थवादी बनो और इस तरह अपनी प्रारब्ध को बदलो। इस तरह सत्यनिष्ठा से, पुन: अपनी उत्कृष्ठता के अनुरूप श्रेष्ठ अवस्था को प्राप्त करने के लिए, अपने मन में आध्यात्मिक क्रांति की लौ जलाओ और अंतर-शक्तियों को पहचान, सत्य-धर्म की निष्काम राह पर विधिवत् कदम बढ़ाओ। ज्ञात हो ऐसा करने से आपका मन स्वत: ही मन्दिर की भांति पावन बन जाएगा और उसमें संतोष, धैर्य, प्रेम, करूणा, क्षमा, दया, त्याग जैसे दिव्य भाव जाग्रत होंगे। फलत: आपका ख़्याल-ध्यान अफुरता से सत्य के साथ जा जुड़ेगा और आप दिव्य दृष्टि का सबक़ प्राप्त कर, सहजता से अलौकिक आत्मज्ञान का वर्त-वर्ताव करने वाले, तत्ववेत्ता बन जाओगे और दिव्य रत्न यानि श्रेष्ठ मानव कहलाओगे। यही नहीं ऐसा कमाल होने पर ही अपने अमीरों के अमीर होने का बोध होगा, जो ‘काम‘ पर फतह पा, ब्रह्ममय होने की सर्वोत्तम बात होगी। अत: इस परम शांतमय अवस्था को प्राप्त करने हेतु उद्यम दिखाओ और किसी भी परिस्थिति के वशीभूत हो पिच्छे कदम न हटाओ। अंत में श्री सजन जी ने कहा कि आध्यात्मिक क्रांति के तहत् अपने असली स्वरूप की पहचान करो और खुद में, परिवार में व समाज में सकारात्मक परिवर्तन ले आओ। इस तरह अपने जीवन को आध्यात्मिक मूल्यों से ओत-प्रोत कर और अर्थपूर्ण बनाओ और सदा के लिए सुखी व आनन्दित हो जाओ