फ़रीदाबाद!भूपानी स्थित सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर आज दिनांक 02 अप्रैल 2025, रामनवमी-यज्ञ, वार्षिक-महोत्सव के अवसर पर हर्षोल्लास के साथ विशाल शोभायात्रा निकाली गई। यह शोभा-यात्रा जैसे ही समभाव-समदृष्टि के स्कूल ‘ध्यान-कक्ष‘ में पहुँची तो श्री सजन जी ने कहा कि आज का दिन हमारे लिए बहुत शुभ है क्योंकि अब शीघ्र ही शुभारंभ होने जा रहा है – रामनौमी यज्ञ महोत्सव का जिसके अंतर्गत न केवल सजनों को सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में विदित युक्ति अनुसार, मूलमंत्र आद् अक्षर यानि प्रणव मंत्र के अजपा जाप द्वारा आत्मप्रकाश में स्थित हो, आत्मज्ञान प्राप्त करने का आवाहन दिया जाना है अपितु अपने-अपने गृहस्थाश्रमों में एकता व प्रसन्नता से शांतिमय जीवनयापन करने हेतु, सम, संतोष-धैर्य अपनाकर, सच्चाई-धर्म के निष्काम रास्ते पर चलते हुए किस प्रकार परोपकार कमाना है व ब्रह्म नाम कहाना है, उसकी युक्ति भी समझाई जाएगी।
इस महत्ता के दृष्टिगत उन्होंने, इस यज्ञ उत्सव में देश-विदेशों से उपस्थित हर सजन से इस जीवन-यज्ञ को निर्विघ्न व निर्विकारिता से सम्पन्न करने हेतु अन्दरुनी वृत्ति में नियम-नीतिनुसार परब्रह्मवाचक मूल-मन्त्र आद्-अक्षर अर्थात् शब्द गुरु ओ३म के साथ ख़्याल का निरंतर ध्यानपूर्वक सम्पर्क स्थापित करने की व बैहरुनी वृत्ति में मन को परेशान करने वाली हर अच्छी व बुरी सोच को त्याग, अफुर अवस्था में आने की, गुजारिश करी ताकि समस्त अंतर्द्वन्द्व व बहिर्द्वन्द्व समाप्त हो जाएं। इस प्रकार उन्होंने सबको अपने मन में असीम शांति का अनुभव करते हुए, उस परम आनन्दित अवस्था का अनुभव करने के लिए कहा जिसके अंतर्गत आत्मा-परमात्मा की एकरूपता का एहसास हो जाता है और जीव सहसा ही कह उठता है:-
‘हम एक हैं, हम एक हैं, हम एकता के प्रतीक हैं अर्थात् हम ब्रह्म हम…….हम ब्रह्म हाँ।
तत्पश्चात् आयोजन के दौरान श्री सजन जी ने उपस्थित सजनों को अपने मन-मस्तिष्क को सम अवस्था में साधे रखते हुए, समवर्त्ती बने रहने का संदेश दिया ताकि सजन समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार अपने ख़्याल व ध्यान को एकाग्रचित्तता से आत्मप्रकाश में साध, सतयुग दर्शन सर्वव्यापक, सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान श्री साजन परमेश्वर का दर्शन करने में कामयाब हो जाए और विचार, सत-जबान, एक दृष्टि, एकता और एक अवस्था को धारण कर, सतयुगी संस्कृति अनुरूप एक अच्छे व नेक इंसान की भांति परस्पर सजन-भाव का व्यवहार करने में निपुण हो जाएं। उन्होंने कहा कि इस हितकारी स्वाभाविक बदलाव से न केवल शारीरिक-मानसिक व आत्मिक स्वस्थता पनपेगी अपितु मन-चित्त में भी स्थाई प्रसन्नता का संचार होगा।
यहाँ उन्होंने जहाँ शारीरिक स्वस्थता के लिए पुरुषार्थ द्वारा निरंतर क्रियाशील व उद्यमी बने रहने की आवश्यकता पर बल दिया वही मानसिक स्वस्थता के लिए सत्-शास्त्र के अध्ययन, चिंतन, मनन व विवेचन द्वारा सकारात्मक उच्च विचार धारण करने को भी नितांत अनिवार्य बताया। इस संदर्भ में श्री सजन जी ने स्पष्ट किया कि मन-मस्तिष्क की तंदुरुस्ती के लिए सत्-शास्त्र का अध्ययन कर आत्मिक ज्ञान प्राप्त करना उतना ही जरूरी है जितना शरीर के लिए व्यायाम। सत्-शास्त्र का अध्ययन ही भावों, विचारों व मन-चित्त को पवित्र कर, स्थाई आनन्द प्रदान करता है। इसके बिना जीवन में आने वाले विषाद यानि दु:खों से निवृत्ति नहीं हो सकती। अत: सत्-शास्त्र का विचार कर, सतत् चिंतन, मनन व अभ्यास द्वारा, उसमें विदित आत्मिक ज्ञान को व्यवहार में लाओ। ऐसा करने से ही सत्य-असत्य, भले-बुरे की परख कर सकोगे यानि बुद्धि विचार प्रबलता धारण करेगी और विवेकशक्ति का प्रयोग करते हुए केवल सत्य धारणा को ही महत्त्व देगी। इस तरह अज्ञान अंधकार दूर होगा यानि मन व बुद्धि श्रेष्ठता को प्राप्त हो जाएगी और आप दिव्यता को धारण कर अमर पद प्राप्त करने के योग्य बन जाओगे। अंत में श्री सजन जी ने सजनों से कहा कि समस्त कारज परिश्रम से सिद्ध होते हैं, मात्र इच्छा करने से नहीं यानि परिश्रमी ही जीवन संग्राम में विजयी होता है। अत: ब्रह्म स्वरूप अपने असलियत प्रकाश में खड़े होने का परम पुरुषार्थ दर्शाओ और इस हेतु अंतर्निहित समस्त शक्तियों को मूलमंत्र आद् अक्षर के सिमरन द्वारा, एकाग्र कर, सतत परिश्रम करने में जुट जाओ। जानो ऐसा करने पर ही आप आत्मनिर्भर होकर आत्मविश्वास के साथ, खुद पर आत्मनियन्त्रण रखते हुए, सत्य-धर्म के निष्काम भक्ति-भाव पर डटे रह पाओगे और एक नेक व ईमानदार इंसान की तरह, इस जगत में निर्लिप्तता से विचरते हुए, इसके माया-पाश से आजाद हो पाओगे। उन्होने कहा कि जानो यह ‘विचार ईश्वर है अपना आप‘ के सर्वोच्च भाव को आत्मसात् कर, जगत उद्धार हेतु परमात्म स्वरूप में स्थित रहते हुए, समस्त कार्य ईश्वर के निमित्त अकर्त्ता भाव से करते हुए कर्म फल से मुक्त रहने की अद्वितीय बात होगी। तभी अपने व सबके सजन बन ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति कहलाने का सौभाग्य प्राप्त कर पाओगे और तीनों लोकों में यश-कीर्ति प्राप्त करने के अधिकारी बन एक श्रेष्ठ मानव की तरह आत्मयथार्थ में बने रह व यथार्थता अनुरूप ही जीवन जीते हुए, परम पद को प्राप्त कर पाओगे और परमानन्द में स्थित हो विश्राम को पाओगे।