फरीदाबाद! सतयुग दर्शन वसुन्धरा में आयोजित राम नवमी यज्ञ महोत्सव के द्वितीय दिवस श्री सजन जी ने उपस्थित सजनों को विवेकशील बनने का आवाहन देते हुए कहा कि परमात्मा की शक्ति कुदरत द्वारा रचित यह जगत प्रकृतिस्थ गुणों यथा (सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण) के कारण गुण-दोषमय है यानि जीवन के हर पक्ष में भले-बुरे तत्व समाहित हैं, जिनमें से एक का चुनाव करने हेतु मानव पूरी तरह से बौद्धिक तौर पर स्वतन्त्र है। यहाँ समझने की बात यह है कि इस चयन के विवेकाधारित होने पर ही मनुष्य के उत्थान-उत्कर्ष का कार्य सिद्ध होता है अन्यथा जीवन रूल जाता है। आशय यह है कि एक विवेकी हंस ही इस गुण-दोषमय प्रकृति में रमण करते समय, सर्वत्र विद्यमान नित्य सार तत्व का बोध कर, असार तत्व का त्याग करने में सक्षम हो पाता है और असत्-अधर्म का पतनोन्मुख अविचारयुक्त रास्ता छोड़, सत्य-धर्म के विचारयुक्त विजय पथ पर सहजता से प्रशस्त हो पाता है।
श्री सजन जी ने सीधे शब्दों में इसका आशय स्पष्ट करते हुए आगे कहा कि एक विवेकशील इंसान ही यह जान पाता है कि देह सहित स्थूल आँखों से दिखाई देने वाले इस नश्वर जगत अर्थात् सृष्टि के तमाम पदार्थों की अनेकता सत्य नहीं है क्योंकि उसकी हकीकत में कोई वास्तविक सत्ता नहीं है, केवल भ्रांति अथवा भ्रम मात्र है। वस्तुत: रूप, रंग, रेखा रहित ब्रह्म ही अप्रत्यक्ष व प्रत्यक्ष रूप से इस जगत का अभिन्न कारण व सार तत्व है और यही उसका वास्तविक ब्रह्म स्वरूप है तथा इसके अतिरिक्त और जो कुछ प्रतीत होता है, वह सब असत्य, असार और मिथ्या है। इस तरह सत्-असत् के विवेक द्वारा वह – मनुष्यता के वाचक यथा संतोष, धैर्य, सच्चाई, धर्म, निष्कामता, परोपकारिता, क्षमा, त्याग, दम, शौच, आत्मसंयम, सदाचार, न्याय, अहिंसा आदि सद्गुणों का वरण करता है और पशु वृत्ति यथा आहार, निद्रा, भय और मैथुन आदि करने की इच्छा से उबर यथार्थ रूप से मानव कहला पाता है। इस तरह मानवता का उदय तभी होता है जब क्षुद्र भोगवासना व अभिमान युक्त, स्वार्थपर आदि नकारात्मक एवं हिंसक भावों पर विवेक की विजय होती है या जहाँ मन की सारी क्रियाएँ तथा चेष्टाएँ विवेक के आधार पर होती हैं।
इस तरह श्री सजन जी ने उपस्थित सजनों को स्पष्ट किया कि जीवन के दो रास्ते हैं। एक अविचारयुक्त अविवेक का मार्ग है, दूसरा विचारयुक्त विवेक सम्पन्न मार्ग है। एक सच-झूठ की परख किए बगैर ही मनमत अनुसार अपनी धारणा निर्मित कर यानि दुर्बुद्धि बन संसार में फँसने का मार्ग है, दूसरा स्थिर बुद्धि द्वारा संसार से छूटने का मार्ग है। एक कवलड़ा यानि कठिनाईयों व ठोकरों भरा रास्ता है, दूसरा सवलड़ा व सुखदायक विजय पथ है। एक क्रिया कारक और भूल का मार्ग है जो सीधा नरकों की ओर जाता है और दूसरा स्वत: सिद्ध निज परमात्म स्वरूप के यथार्थ ज्ञान का मार्ग है, जो सीधा परमधाम की ओर जाता है।
इस तरह दोनों मार्ग परस्पर जुदा हैं तथा इनमें से उत्तम विचारयुक्त विवेक सम्पन्न मार्ग है। स्वतन्त्रता से इस मार्ग का चयन कर, उस पर चलने वाला ही, सत् और असत् का ठीक और स्पष्ट ज्ञान प्राप्त कर, इस विषयी जगत के नकारात्मक दुष्प्रभावों से विमुक्त रह सकता है और कुदरती वेद शास्त्रों में विदित ब्रह्म विचारों को धारण कर, एक विचारशील न्यायशील व आत्मविश्वासी इंसान की तरह, निरासक्त जीवन जीने के योग्य बन, अपने जीवन का हर धर्म-कर्म अकर्त्ता भाव से सम्पन्न करते हुए, कर्मगति से मुक्त रह सकता है और मानव रूप में अपनी सर्वोत्कृष्टता सिद्ध कर सकता है। श्री सजन जी ने कहा कि आप भी सजनों मानव रूप में अपनी सर्वोत्कृष्टता सिद्ध करने वाले ऐसे ही विजयी इंसान बनो। इस हेतु न केवल स्वयं में अपितु अपने बच्चों में भी बाल्यावस्था से ही समभाव समदृष्टि की युक्ति अनुसार, सजनता/एकात्मा के भाव का विकास करो। यहाँ एकात्मा के भाव से तात्पर्य समानता, बराबरी या अभिन्नता के भाव को पकड़ने से यानि ईश्वर सर्वव्यापक है, इस भाव का अपने अन्दर विकास करने से है। इस एकता के भाव को पकड़ने से द्वि-द्वेष व द्वन्द्वात्मक विकारी भाव समाप्त होंगे और मन में सत्य का विकास होगा। सत्य के विकास से मन शांत, चित्तवृत्तियाँ एकाग्र व बुद्धि निर्मल हो जाएगी जिससे विवेकशीलता का विकास होगा। ऐसा होते ही ख़्याल व ध्यान दृष्टि आत्मस्वरूप में स्थिर हो जाएगी और बैहरूनी व अन्दरूनी दोनों वृत्तियों में समता स्थापित हो जाएगी। समता स्थापित हो गई तो हृदय निहित सत्-वस्तु उजागर हो जाएगी और जीवन युग सजन युग बन जाएगा। यही जीवन का लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सजनों पुरुषार्थ दिखाओ और जन्म की बाजी जीत जाओ।