फरीदाबाद। मैट्रों अस्पताल ने चाकू लगने से गम्भीर हुए एक मरीज की जान बचाकर उसे नई जिंदगी दी। मामल यह हैं था कि 26 वर्षी मरीज छाती में बाएं ओर चाकू लगने से गंभीर रूप से घायल हो गया था जिसें तुरन्त ही उसे मैट्रो अस्पताल के एमरजेन्सी विभाग में भर्ती कराया गया। मरीज को साँस लेने में काफी दिक्कत हो रही थी जिससे उसके पेट एवं छाती का सी.ई.-सी.टी स्कैन कराया गया जिससे पता चला कि उसकी छाती के बाएं हिस्से एवं पेट के हिस्से में खून का जमाव है जिसे हिमोथोरेक्स कहते है। तुरन्त ही उनकी छाती में चेस्ट ट्यूब डाला गया जिससे 700 उस ब्लड निकाला गया। बताया गया हैं कि शुरूआती प्रासिजर के बाद मरीज पूरी रात स्टेबल रहा और उसे साँस लेने में दिक्कत भी नहीं हो रही थी। अगले दिन मरीज ने पेट में दर्द था जिस कारण उसका दोबारा से सी.ई.-सी.टी स्कैन व रक्त की जाँचे कराई गई। जिसमें मरीज में रक्त की मात्रा कम पाई गई एवं पेट में खून का जमाव बढ़ गया था। सभी जाँचों के बाद डा. मृदुल सीनियर सर्जन मैट्रो अस्पताल, फरीदाबाद एवं डा. सचिन मित्तल ने मरीज की डायग्नोस्टिक लैप्रोस्कोपी करने का निर्णय लिया। सर्जरी के दौरान पाया गया कि मरीज के पेट में 3.4 लीटर खून जमा है एवं डायफ्रोम के बाई ओर फटा हुआ है। फटे हुए डायफ्रोम तथा रक्त के बहाव को कम करने के लिए लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की गई। इस बाबत डा. मृदुल ने बताया कि इस तरह की सर्जरी अधिकाशत: ओपन सर्जरी द्वारा की जाती है जिसमें 20.25सेमी. का चीरा लगाया जाता है। बड़े चीरे के कारण मरीज को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि असहनीय दर्द, छाती में इन्फेक्शन, लम्बे समय तक अस्पताल में रहना एवं अधिक खर्च। लैप्रोस्कोपिक तकनीक द्वारा हम 4.5 छोटे चीरे (1सेमी से कम) लगाते है ओपन सर्जरी में होने वाली परेशानियों से मरीज को बचा सकते है। ऐसी स्थिति जहाँ एमरजेन्सी में सर्जरी की आवश्यकता हो वहाँ पर लैप्रोस्कोपिक तकनीक द्वारा की गई सर्जरी जोकि एक सुपरस्पेशलटी अस्पताल एवं अनुभवी सर्जन द्वारा ही संभव है एक बहुत अच्छा विकल्प है।