मामले की जांच के लिए किया फोन, डीसी(निगमायुक्त) मीटिग में व्यस्त
फरीदाबाद(Standard news on line news portal/manoj bhardwaj)। समाज सेवी वरूण श्योकंद ने पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के द्वारा 2 सितम्बर 2016 को दिये गये स्टे और राज्य के मुख्य सचिव के द्वारा 16 सितम्बर 2016 को नियमित न करने की हिदायतों के बावजूद 155 कर्मियों को नियमित करने वाले नगर निगम के आयुक्त समीरपाल सरो और शहरी स्थानीय निकाय विभाग हरियाणा के अधिकारियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही करने की मांग की है। श्योकंद ने इस बड़े घोटाले में काफी बड़े-बड़े अधिकारियेां व राजनीतिज्ञों की संलिप्तता के कारण इस संपूर्ण घोटाले की केन्द्रीय जांच ब्यूरो या फिर ईमानदार अधिकारियों की एक एस.आई.टी. से जांच करवाने की मांग की है, जिससे कि इस बेहद संगीन मामले में संलिप्त अधिकारियों व राजनीतिज्ञों का पता लग सके । मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव को प्रेषित अपनी शिकायत में उन्होंने निग्मायुक्त समीरपाल सरो के द्वारा न्यायालय के निर्णय, सरकार की हिदायतों और सरकार की नीति व नियमों की अवहेलना करके 155 कर्मियों के नियमित नियुक्ति के आदेशों को निरस्त करने की मांग भी की है। श्री श्योकंद ने अपनी इस शिकायत की एक प्रति पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्टार जनरल को प्रेषित करते हुए उनसे भी यह अनुरोध किया है कि जनहित याचिका के तौर पर उसकी इस शिकायत को न्यायालय के सम्मुख विचार हेतू प्रस्तुत किया जावे। श्योकंद ने कहा है कि वे इस सारे प्रकरण की केन्द्रीय जांच ब्यूरो से करवाने और गैरकानूनी तरीके से जनहित के विरूद्ध सरकार के कुछेक अधिकारियों व निग्मायुक्त के द्वारा लिए गए इस निर्णय को निरस्त करने के लिए पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे। श्री श्योकंद ने अपनी उक्त शिकायत की एक प्रति मीडिया को जारी करते हुए बताया है कि श्रम न्यायालय में नगर निगम ने इन 117 कर्मियों के योग्यता, आयु, रिहायशी, वेतन, उपस्थिति, इन्हें कब लगाया गया और कब हटाया गया, लाग बुक आदि का कोई भी रिकार्ड प्रस्तुत नहीं किया गया और श्रम न्यायालय ने भी इन्हीं तथाकथित कर्मचारियों के द्वारा प्रस्तुत सूची को निगम के सेवानिवृत अधिकारी की बिना किसी प्रमाणिक दस्तावेजों के दी गई गवाही के आधार पर इन 117 कर्मियों को डयूटी पर वापिस लेने का आदेश पारित कर दिये और निगम के द्वारा इस संपूर्ण मामले में ढ़िलाई बरती गई। छोटे-छोटे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने वाले इस करोड़ों रूपये के खर्चे वाले मामले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दी गई, जबकि पूर्व निग्मायुक्त डा. आदित्य दहिया तक ने इस सारे मामले में घोटाले की आशंका जाहिर की थी। उन्होंने कहा कि सरकार की नियमितकरण की सभी नीतियों पर न्यायालय का स्टे है, मुख्य सचिव ने एक भी कर्मचारी की सेवा को नियमित करने की सख्त हिदायतें जारी की हुई है, निगम के तीन एच.सी.एस. अधिकारियों की एक कमेटी भी नियमित न करने की सलाह दे चुकी है, राज्य के विधि परामर्शी तक ने भी नियमित करने से मना किया है। श्रम न्यायालय, सरकार और अन्य प्राधिकारियों को प्रस्तुत की गई सूचियों में टेम्परिंग की गई है, काफी मामलों में कर्मचारियों, इनके पिता के नाम में भिन्नता है, कुछ कर्मचारी वृद्धावस्था पैंशन प्राप्त कर रहे है, कुछ कर्मचारी व्यक्तिगत रूप से दायर मामलों में हाई कोर्ट तक हार चुके हैं। ये सारी बातें नगर निगम के रिकार्ड में दर्ज है और निरंतर शिकायतें करने के बावजूद न तो राज्य सरकार ने इस संगीन मामले का संज्ञान लिया और निग्मायुक्त का काम देख रहे उपायुक्त समीरपाल सरो ने न्यायालय के आदेशों की अवमानना करते हुए 155 कर्मियों को नियमित करने के आदेश पारित कर दिये। श्री श्योकंद ने अपनी शिकायत में कहा है कि इसका आधार बनाकर इसी प्रकृति के वर्ष 2014 में नये सिरे से नियुक्त किये 1800 कर्मचारी भी 1 अक्टूबर 2003 से नियमितकरण की मांग करेंगे जिसके परिणामस्वरूप निगम कोष पर करोड़ों रूपये का भार पड़ेगा और नागरिकों को मिल रही सुविधायें गड़बड़ा जायेगी। श्योकंद के अनुसार किसी कर्मचारी को नियमित करने के लिए आयु व शैक्षणिक योग्यता में ढ़ील देने के लिए मुख्य सचिव के द्वारा जारी नियमितकरण की नीति में मुख्य सचिव के माध्यम से मंत्रीपरिषद से ढ़ील प्राप्त की जानी आवश्यक है, लेकिन वर्तमान मामले में ऐसा करने की बजाए हरियाणा नगर निगम कर्मचारी सेवा नियम 1998 के प्रावधानों का इस्तंेमाल किया गया जबकि विभागीय सेवा नियमों में नई नियुक्ति का प्रावधान तो है लेकिन नियमितकरण का प्रावधान नहीं है। इस मामले की जांच के लिए जब डीसी(निगमायुक्त) से बात करनी चाहिए तो वह मीटिग में व्यस्थ थे।