फरीदाबाद/भारत में यातायात दुर्घटनाओं और सारकोमा जैसी बीमारियों के परिणामस्वरूप हजारों पैर काट दिए जाते हैं। हालांकि, ऐसे अधिकांश लोगों का पैर बचाया जा सकता है, यदि वे तुरंत बहु-विषयक और लोअर लिम्ब रिकंस्ट्रक्शन टीम से सुसज्जित अस्पताल पहुंच जाते हैं। फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल के लोअर लिम्ब रिकंस्ट्रक्शन सेंटर के रिकंस्ट्रक्टिव सर्जनों ने यह बात कही।
अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद के प्लास्टिक एवं रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट, प्रोफेसर और एचओडी डॉ. मोहित शर्मा ने कहा, “हर साल सड़क दुर्घटनाओं में हजारों लोगों के पैर जख्मी हो जाते हैं और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उनमें से ज्यादातर युवा हैं। ऑन-द-स्पॉट स्टेबलाइजेशन की कमी और उपचार मिलने में देरी के कारण एक्सीडेंट्स के बाद अंग-विच्छेदन की घटनाएं भी अधिक होती हैं। यहां तक कि जब मरीज समय पर ट्रॉमा सेंटर पहुंचता है, तब भी विशेष सर्जनों की कमी के कारण विकलांगता की दर अधिक होती है। हालांकि, इस रुग्णता से बहुत हद तक बचा जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “नवीनतम माइक्रोसर्जिकल तकनीकों ने रिकंस्ट्रक्शन के माध्यम से रोगी के अंगों को बचाना संभव बना दिया है। सड़क दुर्घटना या आघात पीड़ित के पैरों को कटने से बचाने में दो महत्वपूर्ण कारक हैं। चोट लगने के बाद सबसे पहले रोगी को जितनी जल्दी हो सके अस्पताल ले जाना है। एक बार जब वे स्थिर हो जाते हैं, तो दूसरा कदम उन्हें जल्द से जल्द एक बहु-विषयक लोअर लिम्ब रिकंस्ट्रक्शन सुविधा वाले टर्सरी केयर सेंटर में स्थानांतरित करना है, जिसमें माइक्रोवास्कुलर प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्शन सर्जन, क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट वेसकुलर सर्जन, आर्थोपेडिक सर्जन और कुशल एनेस्थेटिस्ट जैसे विशेषज्ञ उपलब्ध हों।
अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद के ऑर्थोपेडिक्स विभाग के एचओडी डॉ. मृणाल शर्मा ने कहा, “अगर तुरंत ध्यान न दिया जाए, तो आघात पीड़ितों को अक्सर घुटने के जोड़ के नीचे अपने पैर काटने पड़ते हैं। इसका कारण यह है कि जब तक सही उपचार प्रदान किया जाता है तब तक प्रभावित हिस्से के टिश्यू और मांसपेशियां मृत हो जाती हैं। यदि हड्डी का नुकसान होता है, तो एक वेस्कुलराइज्ड हड्डी ग्राफ्ट का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। यदि यह भी संभव न हो तो सर्जन विशेष तकनीकों द्वारा हड्डी ट्रांसपोर्ट कर सकते हैं। क्षतिग्रस्त अंग में लोअर लिम्ब रिकंस्ट्रक्शन एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है जिसे एक छोटे अस्पताल में नहीं किया जा सकता है।
अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद के ऑर्थोपेडिक्स विभाग के कंसलटेंट और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ साहिल गाबा ने कहा, “सड़क दुर्घटनाएं अंग विच्छेदन का सबसे आम कारण हैं, दोपहिया वाहन चलाने वाले लोगों को दुर्घटनाओं में अपने पैर खोने का सबसे अधिक खतरा होता है। अधिकांश पीड़ित युवा पुरुष हैं। लोअर लिम्ब के ट्यूमर जैसे चिकित्सीय कारणों के अलावा, भारत में बड़ी संख्या में पैर काटने के लिए रेलवे दुर्घटनाएं और मशीन से कटना भी जिम्मेदार है। दर्दनाक अंग विच्छेदन में महत्वपूर्ण रुग्णता और मृत्यु दर होती है, और यदि अंग का पुनर्निर्माण संभव है तो इसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।”
डॉ. मोहित शर्मा ने कहा, “पिछले एक साल में, हमने अमृता अस्पताल में लोअर लिम्ब रिकंस्ट्रक्शन के छह मामले किए हैं और सभी को बचा लिया गया है और 4 रोगियों ने चलना भी शुरू कर दिया है।”
अमृता अस्पताल में जिन छह मरीजों के लोअर लिम्ब को बचाया गया, उनमें से चार आघात के शिकार थे, जबकि अन्य दो, पैर के सारकोमा से पीड़ित थे।