फरीदाबाद । टीबी एक संक्रामक रोग है। जो आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है। टीबी की बीमारी दूषित खान-पान, प्रदूषण और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर फैलती है। जो न केवल फेफड़ों बल्कि शरीर के किसी भी हिस्से जैसे किडऩी व दिमाग पर भी हमला कर सकता है। टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसका समय पर इलाज न किया जाए तो यह गंभीर रूप धारण कर लेती है जिसके कारण मरीज की मौत भी हो सकती है। लोगों में इस बीमारी के प्रति जागरुकता न होने के कारण लोग इसके लक्षणों को समझ नहीं पाते और और यह बीमारी विकसित होती जाती है। हालांकि लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए समय-समय पर कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिक़ल साइंसेज़ अस्पताल के श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. मानव मनचंदा का कहना है कि हमारे पास रोजाना सौ से अधिक मरीज आते हैं इनमें करीब ३० प्रतिशत लोग टीबी के शिकार होते हैं। जागरूकता के अभाव के कारण टीबी का समय पर इलाज नहीं कराते। ज्यादातर मरीज खांसी और बुखार की समस्या लेकर आते हैं और जांच करने पर उनमें टीबी के लक्षण पाए जाते हैं। फरीदाबाद शहर औद्योगिक नगरी है। यहां कंपनियों की संख्या अधिक होने और उनसे निकलने वाले धुएं के कारण लोग एलर्जी के शिकार हो रहे हैं। इसके अलावा पर्यावरण में बढ़ रहे धूल के कणों, मिट्टी आदि के कारण भी मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। क्योंकि प्रदूषित वातावरण में टीबी के बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। जो शरीर के किसी भी हिस्से जैसे किडऩी व दिमाग को प्रभावित करते हैं। लोगों को टीबी के बारे में जानकारी न होने के कारण समय पर इलाज नहीं करवाते जिसके कारण बीमारी गंभीर रूप धारण कर लेती है। बच्चों और बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों में रोगों से लडऩे की क्षमता कम होने के कारण वे जल्दी इसकी चपेट में आते हैं। डॉ. मानव ने बताया कि बिना कुछ किए लगातार वज़न कम होना, दो हफ्ते से ज्यादा खांसी होना, सीने में दर्द होना, कफ व थूक में खून आना, बुखार होना और भूख न लगने जैसे लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। टीबी एक ऐसी बीमारी है जो मरीज के छूने से नहीं फैलती,बल्कि छींकने और खांसने से इसके बैक्टीरिया हवा में फैलकर अन्य लोगों को शिकार बनाते हैं। इसलिए अगर कोई व्यक्ति टीबी से ग्रसित है तो उसे लोगों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। मुंह को ढककर रखना चाहिए। दवाओं का कोर्स पूरा करना चाहिए। अगर कोर्स बीच में छोड़ दिया जाता है। तो यह दोबारा पनप जाती है और गंभीर रूप धारण कर लेती है जिसके कारण मरीज की मौत भी हो जाती है। जिसमें विटामिन, मिनरल, प्रोटीन , कैल्शियम और फाइबर मौजूद हो ऐसे संतुलित भोजन का सेवन करना चाहिए। जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है। लोगों का मानना है कि गर्भावस्था में ली जाने वाली दवाएं गर्भ में पल रहे बच्चे पर बुरा प्रभाव डालती हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि टीबी के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएं गर्भावस्था में भी ली जा सकती हैं। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को भी बीमारी के पनपने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा बच्चे के जन्म के तुरंत बाद बीसीजी का टीका जरूर लगवा लेना चाहिए। जोकि टीबी का शिकार होने से बचाता है।