फरीदाबाद! ग्राम भूपानि स्थित, सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर बड़ी ही धूमधाम से सतयुग दर्शन ट्रस्ट का वार्षिक उत्सव यानि राम नौमी यज्ञ महोत्सव मनाया जा रहा है। इस उत्सव के तृतीय दिवस लाखों की संख्या में सम्मिलित देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं को ब्रह्म भाव अपनाने के प्रति प्रेरित करते हुए ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार कहा कि ओ3म् शब्द मूल मंत्र आद् अक्षर है। यही अमर आत्मा है और इस आत्मा में परमपिता परमात्मा है। इस आशय से स्पष्ट होता है कि स्पष्ट होता है कि शाश्वत , अजर-अमर, अविनाशी शब्द ब्रह्म ही सार्थक ध्वनि के रूप में आत्मिक ज्ञान प्रदान करने का साधन है व इसी ओ३म् शब्द में ही सृष्टि का समस्त ज्ञान विज्ञान सम्मोहा हुआ है। यही नहीं यही सुरत व शब्द के मिलन का व विलीन होने का केन्द्र बिन्दु यानि शून्य स्थान है व यही पहुँच जीव विश्राम पाता है। आशय यह है कि यही मूल मंत्र शब्द गुरु ही एकमात्र ऐसा रुाोत है जो मानव का परम सत्ता के साथ तादात्मय बना, सर्व को एक सूत्र में बाँध सकता है व सबके मन-मस्तिष्क को एक ही तरह के आत्मिक ज्ञान के प्रवाह से भरपूर कर, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ यानि सर्व कला सम्पूर्ण बना सकता है। इस तरह यह ही इंसान को सत्य-धर्म के निष्काम पथ का अनुगामी बना, आजीवन निर्विकारी अवस्था में साधे रख परउपकार प्रवृत्ति में ढाल, निष्पाप जीवनयापन करने के योग्य बना सकता है। अत: हमारे लिए बनता है कि हम अपने इस यथार्थ को सहर्ष स्वीकारते हुए कि “मैं नश्वर शरीर नहीं वरन् “अमर आत्मा” हूँ और “आत्मा में परमात्मा है”, एक विवेकशील बुद्धिमान इन्सान की तरह, ब्रह्मभाव अपनाकर, इस ब्रह्ममय जगत में भ्रमरहित होकर, यथार्थतापूर्ण जीवन जीना आरम्भ करें। ऐसा करने पर ही हमारी वृत्ति, स्मृति, बुद्धि व भाव/स्वभाव रूपी बाणा निर्मल हो सकते हैं और मन:शांति के प्रभाव से हमारा ख़्याल ध्यान स्थिरता से परमात्मा संग जुड़ा रह, सज्जनता का प्रतीक बन सकता है। यही नहीं इसी तरह हमारी जिह्वा स्वतन्त्र, संकल्प स्वच्छ व दृष्टि कंचन हो सकती है और हमारे कर्मों में सकारात्मकता व निष्कामता पनप सकती है। इस संदर्भ में उन्होंने आगे कहा कि सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के चिंतन एवं मनन द्वारा उच्च बुद्धि, उच्च ख़्याल होकर, नौजवान युवा अवस्था को धारण करने हेतु, भरपूर उत्साह व उंमग में आकर, शांत मन से सर्वप्रथम सजनों स्वीकारो कि “मैं ब्रह्म हूँ और परब्रह्मवाचक शब्द ओ३म् मेरी अमर आत्मा है”। अब मानो कि इस अमर आत्मा में परमात्मा है। शनै: शनै: इस सत्य का अनुभव करते हुए बोध करो कि यही असलियत ब्रह्म स्वरूप प्रकाश ही मेरा अपना प्रकाश है। फिर ख़्याल द्वारा एकरस मूलमंत्र आद् अक्षर का जाप आरम्भ कर दो और अनुभव करो कि इस क्रिया द्वारा ज्यों-ज्यों आत्मप्रकाश से आपका ह्मदय प्रकाशित हो रहा है वैसे-वैसे अंधकारमय वातावरण छँट रहा है और सत्य प्रकट हो रहा है। अब अत्यन्त समझदारी से जो लुप्त हो रहा है उसे छोड़ते जाओ और जो प्रकट हो रहा है उसे धारते जाओ।साथ ही साथ आत्मनिरीक्षण करते हुए अक्षर को एक रस चलाने में प्रयासरत रहो ताकि कहीं कोई सांसारिक फुरना, अक्षर के एकरस चलने में विघ्न न डाल पाए। इस तरह अक्षर चलाने की क्रिया पर ध्यान का पहरा रखो और अफुरता से अक्षर चलाना सुनिश्चित कर अपने ह्मदय को परिपूर्णता प्रकाशित कर व अपनी सुरत को शब्द संग जोड़े रख आत्मबोध करने की चेष्टा करो। उन्होने कहा कि मात्र इतनी सी सावधानी व मेहनत से जो सत्य रूपी अमृतत्व प्राप्त होता है उसके सेवन से ही इन्सान के मन में परिपूर्ण तृप्ति का एहसास रहता है और चित्त शांत हो जाता है। ऐसा होने पर इन्सान के लिए आत्मभाव में बने रह इस जगत में रहते हुए भी इस जगत से निर्लेप अपने वास्तविक परब्रह्म स्वरूप में यथा बने रहना सहज हो जाता है और वह जगत विजयी एक रूप हो कह उठता है:-
हम ब्रह्म प्रकाश हम, हम ब्रह्म प्रकाश हां
हम हर अन्दर