तुम स्याह बादल बन आये थे आज मेरे देस
और छा गए थे घटा बन घनघोर
आकाश पर….मुझ पर….
बरसे थे बूँद बूँद…मुझ पर
मैंने थाम लिया था तुम्हे
अपनी खुली हथेलितों पर…
तुम झरे थे बूद बूँद मेरी खुली जुल्फों से
और सरक आये थे मेरी ग्रीवा से नीचे
तुम्हारे स्पर्श से दहक उठी थी मैं
लाल गुलमोहर सी…
भिगो दिया था तुमने मेरा तन …मन
मेरे पैरों से फिर नीचे तुम बह चले थे….
कर मुझे सिक्त लिए अपने आगोश में….
सराबोर कर मेरी रूह को अपने प्यार में
और फिर दांतों तले मुस्कान दबाये ”देखा था मुझे एक भर निगाह तुमने….रेनू मिश्रा लखनऊ (कवियत्रि)